आर्टिकल नंबर 01
वासना का संबंध शरीरगत,मनोगत होता है,अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं, कामनाओं से इसका सम्बन्ध होता है,प्रेम का सम्बंध आत्मा से होता है,इसमें प्रेम,दया करुणा,संवेदना, सहानुभूति, उदारता,छमा,वात्सल्य आदि दैवीय गुणों से होता है,वासना में स्वार्थपरता, क्षुद्रता, मोहपाश,अंहता होती है और प्रेम में निःस्वार्थता, समर्पण,विसर्जन, विलय,त्याग,अनाशक्ति होती है।वासना अनित्य शन भंगुर होती है एक वासना मन मे उठती है फिर दूसरी ऐसा क्रम चलता रहता है एक निश्चित प्रकार की वासना का प्रभाव उसके तृप्ति होने तक ही रहता है भोग होने पर कुछ समय बाद पुनः उसकी मांग उठती है वासना कभी शांत नही होतीहै,प्रेम शाश्वत, नित्य होता है एक जैसा बना रहता है कम ज्यादा नही होता ,प्रेम में शांति होती है,वासना से हमारी ऊर्जा का अधोगमन होता है ऊर्जा नीचे की और जाति है प्रेम से ऊर्जा का विस्तार ,ऊर्ध्वगमन, उपर की और जाती है।वासना हमे माया में ,बंधन में जकड़े रहती है हमारे विकास में बाधक होती है,वासना में काम,क्रोध,मोह,लोभ जैसे विकार उत्पन्न हो जाते है।प्रेम निश्छल, सात्विक,पवित्रता,निर्मलता होती है,प्रेम अविकारी होता है,प्रेम में प्रेमी के प्रति,ईश्वर के प्रति अनुराग बढ़ता है,अंशी अपने अंश की और बढ़ता है,इससे ज्ञान व मुक्ति मिलती है,प्रेम से व्यक्तितव का विकास होता है।वासना में लेने का भाव होता है कितना बटोरले,जमा कर ले,वासना व्यक्तिप्रधान होती है इसमें केवल अपना हित समाहित रहता है,प्रेम में देने का भाव होता है अपने पास जो कुछ भी है उसे उड़ेलने का मन रहता है सामने वाले के लिए कुछ करने की इच्छा रहती है इसमें प्रेमी के हित की प्रधानता रहती है जैसी शबरी की हनुमान की,प्रेम में अपनत्व होता है।
प्रज्ञापुत्र की कलम से✍👏
कायाकल्प योग,निसर्गोपचार अनुसंधान केंद्र बैतुल
प्रकृति उत्थान सेवा समिति
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